कवि कुछ ऎसी तान सुनाओ
जिससे उथल-पुथल मच जाये
एक हिलोर इधर से आये
एक हिलोर उधर से आये
दुष्यंत कुमार त्यागी
घंटियों की गूँज कानों तक पहुँचती है
इक नदी जैसे दहानों तक पहुँचती है
अब इसे क्या नाम दें ये बेल देखो तो
कल उगी थी आज शानों तक पहुँचती है
इक नदी जैसे दहानों तक पहुँचती है
अब इसे क्या नाम दें ये बेल देखो तो
कल उगी थी आज शानों तक पहुँचती है
गोपालदास नीरज
इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में
तुमको लग जाएंगीं सदियाँ हमें भुलाने में
न तो पीने का सलीका न पिलाने का सुहूर
ऐसे ही लोग चले आये हैं मयखाने में
आज भी उसके लिए होतीं हैं पागल कलियाँ
जाने क्या बात है नीरज के गुनगुनाने में
तुमको लग जाएंगीं सदियाँ हमें भुलाने में
न तो पीने का सलीका न पिलाने का सुहूर
ऐसे ही लोग चले आये हैं मयखाने में
आज भी उसके लिए होतीं हैं पागल कलियाँ
जाने क्या बात है नीरज के गुनगुनाने में
नदीम नैयर
बाद में बेचता है अपनी दवाएं क़ातिल
पहले हर शख्स को बीमार किया जाता है
झूठ की आज हुकूमत है ज़माने भर में
जो भी सच्चा है वो बर्बाद किया जाता है
पहले हर शख्स को बीमार किया जाता है
झूठ की आज हुकूमत है ज़माने भर में
जो भी सच्चा है वो बर्बाद किया जाता है
गोपालदास नीरज
कांपती लौ, ये स्याही, ये धुआं, ये काजल
उम्र सब अपनी इन्हें गीत बनाने में कटी
कौन समझे मेरी आँखों की नमी का मतलब
जिंदगी गीत थी पर जिल्द बंधाने में कटी
उम्र सब अपनी इन्हें गीत बनाने में कटी
कौन समझे मेरी आँखों की नमी का मतलब
जिंदगी गीत थी पर जिल्द बंधाने में कटी
आसिफ
उसे दरकार हैं सजदे भी मेरे, मेरा सर भी उड़ाना चाहता है
चिरागों की हिफाज़त करने वाला, हवाएं भी चलाना चाहता है
तेरी बख्शी हुई इस जिंदगी को, कहाँ ले जाऊं आसिफ ये बतादे
तबीयत कुछ बनाना चाहती है, मुक़द्दर कुछ बनाना चाहता है
चिरागों की हिफाज़त करने वाला, हवाएं भी चलाना चाहता है
तेरी बख्शी हुई इस जिंदगी को, कहाँ ले जाऊं आसिफ ये बतादे
तबीयत कुछ बनाना चाहती है, मुक़द्दर कुछ बनाना चाहता है
मीर तकी मीर
इश्क़ में न खौफ़-ओ-खतर चाहिए
जान के देने को जिगर चाहिए
शर्त सलीका है हर इक उम्र में
ऐब भी करने को हुनर चाहिए
जान के देने को जिगर चाहिए
शर्त सलीका है हर इक उम्र में
ऐब भी करने को हुनर चाहिए
शंभू शिखर
सोचता हूँ कि ये दुनिया क्या है
वो पराया है तो अपना क्या है
शाम से चाँद साथ है मेरे
आज आकाश में निकला क्या है
वो पराया है तो अपना क्या है
शाम से चाँद साथ है मेरे
आज आकाश में निकला क्या है
मिर्जा असदुल्लाह खाँ गालिब
बाज़ीचा-ए-अतफाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे
इमां मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
काबा मेरे पीछे है क़लीसा मेरे आगे
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
ये देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे
इमां मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
काबा मेरे पीछे है क़लीसा मेरे आगे
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
ये देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे
मीर तकी मीर
देख तो दिल कि जां से उठता है
ये धुआं सा कहाँ से उठता है
यूं उठे आह उस गली से हम
जैसे कोई जहाँ से उठता है
ये धुआं सा कहाँ से उठता है
यूं उठे आह उस गली से हम
जैसे कोई जहाँ से उठता है
अज्ञात
ऐलान कर रहे हैं बड़ी आजिज़ी से हम
डरते नहीं खुदा के अलावा किसी से हम
वो शायरी जो मीर को रोटी न दे सकी
दौलत कमा रहे हैं उसी शायरी से हम
डरते नहीं खुदा के अलावा किसी से हम
वो शायरी जो मीर को रोटी न दे सकी
दौलत कमा रहे हैं उसी शायरी से हम
unknown
LAUGHING FACES
DOES NOT MEAN THAT
THERE IS ABSENCE OF
SORROW
BUT IT MEANS THAT
THAY HAVE
THE ABILITY
TO DEAL WITH THEM....
DOES NOT MEAN THAT
THERE IS ABSENCE OF
SORROW
BUT IT MEANS THAT
THAY HAVE
THE ABILITY
TO DEAL WITH THEM....
ओशो का गद्य-काव्य
अँधेरे के साथ कुछ भी नहीं किया सकता
जो भी हो सकता है वो प्रकाश के ही साथ संभव है
अन्धकार मिटाना है तो प्रकाश उत्पन्न कर दो
अन्धकार फैलाना है तो प्रकाश समाप्त कर दो.....
वैसे ये कहना भी भाषा की विवशता है
कि अन्धकार चला गया
जो था ही नहीं वो जा कैसे सकता है
इसका अर्थ है
कि हम अन्धकार के अस्तित्व को
स्वीकार कर रहे हैं
जो भी हो सकता है वो प्रकाश के ही साथ संभव है
अन्धकार मिटाना है तो प्रकाश उत्पन्न कर दो
अन्धकार फैलाना है तो प्रकाश समाप्त कर दो.....
वैसे ये कहना भी भाषा की विवशता है
कि अन्धकार चला गया
जो था ही नहीं वो जा कैसे सकता है
इसका अर्थ है
कि हम अन्धकार के अस्तित्व को
स्वीकार कर रहे हैं
अजीम शाकरी
खुदाया यूँ भी हो कि उसके हाथों क़त्ल हो जाऊं
वही इक ऐसा कातिल है जो पेशावर नहीं लगता
मुहब्बत तीर है और तीर बातिन छेद देता है
मगर नीयत ग़लत हो तो निशाने पर नहीं लगता
वही इक ऐसा कातिल है जो पेशावर नहीं लगता
मुहब्बत तीर है और तीर बातिन छेद देता है
मगर नीयत ग़लत हो तो निशाने पर नहीं लगता
अजीम शाकरी
मुसलसल हँस रहा हूँ गा रहा हूँ
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ
किनारे मेरी जानिब बढ़ रहे हैं
मगर मैं हूँ कि डूबा जा रहा हूँ
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ
किनारे मेरी जानिब बढ़ रहे हैं
मगर मैं हूँ कि डूबा जा रहा हूँ
जगपाल सिंह सरोज
देख पालकी जिस दुल्हन की बहक गया हर एक बाराती
जिसके द्वार उठेगा घूंघट जाने उस पर क्या बीतेगी
एक बार सपने में छूकर तन-मन-चंदन-वन कर डाला
जो हर रोज़ छुआ जाएगा उस पागल पर क्या बीतेगी
जिसके द्वार उठेगा घूंघट जाने उस पर क्या बीतेगी
एक बार सपने में छूकर तन-मन-चंदन-वन कर डाला
जो हर रोज़ छुआ जाएगा उस पागल पर क्या बीतेगी
इब्न-ए-इंशा
अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले
दश्त पड़ता है मियाँ इश्क में घर से पहले
जी बहलता ही नहीं अब कोई सा'अत कोई पल
रात ढलती ही नहीं चार पहर से पहले
दश्त पड़ता है मियाँ इश्क में घर से पहले
जी बहलता ही नहीं अब कोई सा'अत कोई पल
रात ढलती ही नहीं चार पहर से पहले
जिगर मुरादाबादी
हमें मालूम है हम से सुनो महशर में क्या होगा
सब उस को देखते होंगे वो हमको देखता होगा
जहन्नुम हो कि जन्नत जो भी होगा फैसला होगा
ये क्या कम है हमारा और उस का सामना होगा
सब उस को देखते होंगे वो हमको देखता होगा
जहन्नुम हो कि जन्नत जो भी होगा फैसला होगा
ये क्या कम है हमारा और उस का सामना होगा
सागर त्रिपाठी
सियासत भी अजूबी बोलती है
रियाकारों की तूती बोलती है
ज़माना बेरहम है कुछ भी बोले
गिला ये है कि तू भी बोलती है
रियाकारों की तूती बोलती है
ज़माना बेरहम है कुछ भी बोले
गिला ये है कि तू भी बोलती है
बशीर बद्र
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया एक आदमी न मिला
ख़ुदा की इतनी बड़ी क़ायनात में हमने
बस एक शख्स को चाहा हमें वही न मिला
बहुत तलाश किया एक आदमी न मिला
ख़ुदा की इतनी बड़ी क़ायनात में हमने
बस एक शख्स को चाहा हमें वही न मिला
मुनव्वर राणा
किसी को घर मिल हिस्से में या कोई दुकाँ आई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई
मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई
मिर्ज़ा असदुल्लाह खाँ ग़ालिब
बाज़ीचा-ए-अतफाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
ये देख कि क्या रंग है तेरा मेरा आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
ये देख कि क्या रंग है तेरा मेरा आगे
अज्ञात
जब से टूटा है चमकता हुआ तारा मेरा
कोई रिश्ता ही नहीं जैसे तुम्हारा-मेरा
तुम नहीं हो तो मज़े रूठ गए हैं मेरे
हो ही जाता है बहरहाल गुज़ारा मेरा
अब तो आवाज़ पे आवाज़ दिए जाता हूँ
काम करता था कभी एक इशारा मेरा
कोई रिश्ता ही नहीं जैसे तुम्हारा-मेरा
तुम नहीं हो तो मज़े रूठ गए हैं मेरे
हो ही जाता है बहरहाल गुज़ारा मेरा
अब तो आवाज़ पे आवाज़ दिए जाता हूँ
काम करता था कभी एक इशारा मेरा
मंज़र भोपाली
कोई बचने का नहीं साबका पता जानती है
किस जगह आग लगानी है हवा जानती है
आँधियाँ ज़ोर लगायें भी तो होता है
गुल हिलाने का हुनर बाद-ए-सबा जानती है
किस जगह आग लगानी है हवा जानती है
आँधियाँ ज़ोर लगायें भी तो होता है
गुल हिलाने का हुनर बाद-ए-सबा जानती है
अज्ञात
ज़रा सा नाम और तारीफ़ पाकर
हम अपने कद से बढ़कर बोलते हैं
संभल कर गुफ़्तगू करना बुजुर्गों
कि बच्चे अब पलट कर बोलते हैं
हम अपने कद से बढ़कर बोलते हैं
संभल कर गुफ़्तगू करना बुजुर्गों
कि बच्चे अब पलट कर बोलते हैं
मंगल नसीम
माना हमारे हक़ में बहुत कुछ हुआ मगर
जैसा कहा था आपने वैसा कहाँ हुआ
हमने ग़ज़ल को सींचा लहू से तमाम उम्र
लेकिन ग़ज़ल में ज़िक्र हमारा कहाँ हुआ
जैसा कहा था आपने वैसा कहाँ हुआ
हमने ग़ज़ल को सींचा लहू से तमाम उम्र
लेकिन ग़ज़ल में ज़िक्र हमारा कहाँ हुआ
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