बालकृष्ण शर्मा 'नवीन'

कवि कुछ ऎसी तान सुनाओ
जिससे उथल-पुथल मच जाये
एक हिलोर इधर से आये
एक हिलोर उधर से आये

मीर

शाम से ही बुझा सा रहता है
दिल हुआ है चिराग़ मुफ़लिस का

दुष्यंत कुमार त्यागी

घंटियों की गूँज कानों तक पहुँचती है
इक नदी जैसे दहानों तक पहुँचती है
अब इसे क्या नाम दें ये बेल देखो तो
कल उगी थी आज शानों तक पहुँचती है

नोमानी

इस सादगी पे कौन न मर जाये ऐ खुदा
लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं
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