अल्हड़ बीकानेरी

ख़ुद पे हँसने की कोई राह निकालूँ तो हँसूँ
अभी हँसता हूँ ज़रा मूड में आ लूँ तो हँसूँ

जिनकी साँसों में कभी गंध न फूलों की बसी
शोख़ कलियों पे जिन्होंने सदा फब्ती ही कसी
जिनकी पलकों के चमन में कोई तितली न फँसी
जिनके होंठों पे कभी भूले से आई न हँसी
ऐसे मनहूसों को जी भर के हँसा लूँ तो हँसूँ

अल्हड़ बीकानेरी

आप जितना भी चाहें बिगड़ लीजिये
दोष हम पर ज़माने का मढ़ लीजिये
हम हैं पुस्तक खुली हमको पढ़ लीजिये
अपने ऐबों को ढँकने की आदत नहीं
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