घंटियों की गूँज कानों तक पहुँचती है
इक नदी जैसे दहानों तक पहुँचती है
अब इसे क्या नाम दें ये बेल देखो तो
कल उगी थी आज शानों तक पहुँचती है
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जज़्बात जब शेर-ओ-सुख़न की शक्ल इख्तियार कर लेते हैं तो सभी को अपने-से लगते हैं। ये बज़्म है कुछ ज़हीन शायरों की......
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