शंभू शिखर

सोचता हूँ कि ये दुनिया क्या है
वो पराया है तो अपना क्या है
शाम से चाँद साथ है मेरे
आज आकाश में निकला क्या है

मिर्जा असदुल्लाह खाँ गालिब

बाज़ीचा-ए-अतफाल है दुनिया मेरे आगे
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे
इमां मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र
काबा मेरे पीछे है क़लीसा मेरे आगे
मत पूछ कि क्या हाल है मेरा तेरे पीछे
ये देख कि क्या रंग है तेरा मेरे आगे

मीर तकी मीर

देख तो दिल कि जां से उठता है
ये धुआं सा कहाँ से उठता है
यूं उठे आह उस गली से हम
जैसे कोई जहाँ से उठता है

अज्ञात

ऐलान कर रहे हैं बड़ी आजिज़ी से हम
डरते नहीं खुदा के अलावा किसी से हम
वो शायरी जो मीर को रोटी न दे सकी
दौलत कमा रहे हैं उसी शायरी से हम

अज्ञात

देख लेना एक दिन तनहा खड़े रह जाओगे
छोड़ दो तुम दोस्तो को आजमाने का हुनर
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