सोचता हूँ कि ये दुनिया क्या है
वो पराया है तो अपना क्या है
शाम से चाँद साथ है मेरे
आज आकाश में निकला क्या है
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जज़्बात जब शेर-ओ-सुख़न की शक्ल इख्तियार कर लेते हैं तो सभी को अपने-से लगते हैं। ये बज़्म है कुछ ज़हीन शायरों की......
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