इतने बदनाम हुए हम तो इस ज़माने में
तुमको लग जाएंगीं सदियाँ हमें भुलाने में
न तो पीने का सलीका न पिलाने का सुहूर
ऐसे ही लोग चले आये हैं मयखाने में
आज भी उसके लिए होतीं हैं पागल कलियाँ
जाने क्या बात है नीरज के गुनगुनाने में
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