नागार्जुन

कालिदास! सच-सच बतलाना
इंदुमती के मृत्यु शोक से
अज रोया या तुम रोये थे
कालिदास! सच-सच बतलाना

शिवजी की तीसरी आँख से
निकली हुई महाज्वाला से
घृतमिश्रित सूखी समिधा सम
कामदेव जब भस्म हो गया
रति का क्रंदन सुन आँसू से
तुमने ही तो दृग धोये थे
कालिदास! सच-सच बतलाना
रति रोयी या तुम रोये थे?

वर्षा ऋतु की स्निग्ध भूमिका
प्रथम दिवस आषाढ़ मास का
देख गगन में श्याम घन-घटा
विधुर यक्ष का मन जब उचटा
खड़े-खड़े जब हाथ जोड़कर
चित्रकूट के सुभग शिखर पर
उस बेचारे ने भेजा था
जिनके द्वारा ही संदेशा
उन पुष्करावर्त मेघों का
साथी बनकर उड़ने वाले
कालिदास! सच-सच बतलाना
पर पीड़ा से पूर-पूर हो
थक-थक कर और चूर-चूर हो
अमल-धवल गिरि के शिखरों पर
प्रियवर! तुम कब तक सोये थे?
रोया यक्ष या तुम रोये थे?
कालिदास! सच-सच बतलाना

2 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आल्हादित कर दिया आपने,
याद दिला कर बाबा की।
सन् नब्बे से बसी हुई है,
मन में मूरत बाबा की।
मेरे घर वे रहे आठ दिन,
स्मृति बसी है बाबा की।
कविताओं की पृष्ठभूमि में,
सुनी कहानी बाबा की।

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