अजीम शाकरी

खुदाया यूँ भी हो कि उसके हाथों क़त्ल हो जाऊं
वही इक ऐसा कातिल है जो पेशावर नहीं लगता
मुहब्बत तीर है और तीर बातिन छेद देता है
मगर नीयत ग़लत हो तो निशाने पर नहीं लगता

No comments:

विजेट आपके ब्लॉग पर