मंगल नसीम

माना हमारे हक़ में बहुत कुछ हुआ मगर
जैसा कहा था आपने वैसा कहाँ हुआ
हमने ग़ज़ल को सींचा लहू से तमाम उम्र
लेकिन ग़ज़ल में ज़िक्र हमारा कहाँ हुआ

No comments:

विजेट आपके ब्लॉग पर