मंज़र भोपाली

कोई बचने का नहीं साबका पता जानती है
किस जगह आग लगानी है हवा जानती है
आँधियाँ ज़ोर लगायें भी तो होता है
गुल हिलाने का हुनर बाद-ए-सबा जानती है

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