ओशो का गद्य-काव्य

अँधेरे के साथ कुछ भी नहीं किया सकता
जो भी हो सकता है वो प्रकाश के ही साथ संभव है
अन्धकार मिटाना है तो प्रकाश उत्पन्न कर दो
अन्धकार फैलाना है तो प्रकाश समाप्त कर दो.....
वैसे ये कहना भी भाषा की विवशता है
कि अन्धकार चला गया
जो था ही नहीं वो जा कैसे सकता है
इसका अर्थ है
कि हम अन्धकार के अस्तित्व को
स्वीकार कर रहे हैं

1 comment:

Divine India said...

दर्शन को अगर लिया जाए तो सबसे सही रुप में ओशो ने इसे समझा था… बहुत ही अच्छा लगा इसे पढ़कर…।

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